वो वफ़ा की रसम क्या मुझसे निभाने निकला ,
मेरा ही दर्द था जो मुझको रुलाने निकला,
वो हर कदम पे क्या मेरा साथ निभाने निकला,
मेरी ही परछियाँ थी , जो मंजिल तक सहारा निकला!
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वो कहते है की वो मुझे जानते है ..
वो जानते है की या अनजान बनते है
इस गुलिस्तान में एक है जो पहचानते है .
हम उनका ही फ़साना गुन्गुनानते रहते है !
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Maya Manzil
maya.manjil@gmail.com
मेरा ही दर्द था जो मुझको रुलाने निकला,
वो हर कदम पे क्या मेरा साथ निभाने निकला,
मेरी ही परछियाँ थी , जो मंजिल तक सहारा निकला!
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वो कहते है की वो मुझे जानते है ..
वो जानते है की या अनजान बनते है
इस गुलिस्तान में एक है जो पहचानते है .
हम उनका ही फ़साना गुन्गुनानते रहते है !
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Maya Manzil
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