मैं एक उलझी सी पहेली हू,
खुद की सुलझी सी सहेली हू,
चांदनी रात में सपनो को बुनती हू,
दिन के उजाले में उनको ढूंढती हू !
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Maya Manzil
maya.manjil@gmail.com
खुद की सुलझी सी सहेली हू,
चांदनी रात में सपनो को बुनती हू,
दिन के उजाले में उनको ढूंढती हू !
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